Jagrat svapna susupta bhede turya bhoga sambhavah

जाग्रत्स्वप्न्सुषुप्तिभेदे तुर्याभोग सम्भव:

जाग्रत्स्वप्न्सुषुप्तिभेदे तुर्याभोग सम्भव:

जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के भेद होने पर भी तुर्याभोग मतलब परमानन्द की अनुभूति होती है |  भेद में भी अभेद का ज्ञान नित्य या निरंतर रहता है |

इसका गहरा अर्थ यह है कि मनुष्य के जीवन में जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तीन अवस्थाएँ होती हैं। जाग्रत अवस्था में मनुष्य बाहरी दुनिया का अनुभव करता है, स्वप्न अवस्था में वह अपनी मन की कल्पनाओं का अनुभव करता है, और सुषुप्ति अवस्था में वह किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं करता है। इन तीनों अवस्थाओं में भी, परमानन्द की अनुभूति हो सकती है। मनुष्य के जीवन में भले ही विभिन्न प्रकार की परिस्थितियाँ हों,  लेकिन परमानन्द की अनुभूति हमेशा संभव है। यह अनुभूति मनुष्य के भीतर ही विद्यमान है, उसे बाहर से खोज ने की आवश्यकता नहीं है।

जाग्रत अवस्था में, परमानन्द की अनुभूति तब होती है जब मनुष्य अपने आंतरिक और बाहरी जीवन में सामंजस्य और संतुलन प्राप्त करता है। स्वप्न अवस्था में, परमानन्द की अनुभूति तब होती है जब मनुष्य अपने सपनों में सुख और आनंद का अनुभव करता है। सुषुप्ति अवस्था में, परमानन्द की अनुभूति तब होती है जब मनुष्य किसी भी प्रकार के दुःख या पीड़ा से मुक्त होता है।

भेद में भी अभेद का ज्ञान नित्य या निरंतर रहता है। इसका अर्थ यह है कि भौतिक दुनिया में भी, परमात्मा का अंश विद्यमान है। भेद केवल एक भ्रम है, वास्तव में सब कुछ एक है। भौतिक दुनिया में भेद दिखाई दे सकते हैं, लेकिन वास्तव में सब कुछ एक है। यह ज्ञान मनुष्य को अहिंसा, करुणा और प्रेम जैसे गुणों को विकसित करने में मदद करता है।

इस प्रकार, जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के भेद होने पर भी, परमानन्द की अनुभूति हो सकती है। और, भेद में भी अभेद का ज्ञान नित्य या निरंतर रहता है। यह ज्ञान ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाता है।

Experience of Turya in three different states of wakefulness, dream and deep sleep.

Despite the distinctions between the waking state (जाग्रत), the dream state (स्वप्न), and the deep sleep state (सुषुप्ति), one can experience the transcendental bliss (तुर्याभोग मतलब परमानन्द की अनुभूति) which signifies the realization of supreme joy or enlightenment. This suggests that even when we are awake, dreaming, or in deep sleep, there is an underlying, unchanging awareness that allows us to perceive the eternal unity (अभेद) amidst these various states of consciousness (भेद). This awareness of unity remains constant and continuous (नित्य या निरंतर), emphasizing that the knowledge of this unchanging reality persists throughout all our experiences.

It points towards the idea that beyond the apparent diversity of our conscious experiences in different states, there exists an unchanging, blissful awareness that connects and unifies them all, leading to a profound understanding of our true nature and the ultimate realization of supreme bliss or oneness.

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